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Hindi Moral Stories

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#21
एक दिन यकायक बहुत जल्दी में वह पादरी के पास पहुंचा और बोला - मेरे लड़का हुआ है और उसका नामकरण-संस्कार कराना चाहता हूँ।

उसका नाम क्या रखेंगे ?

अपने पिता के नाम पर - फिन !

और गवाह कौन होंगे ?

थोर्ड़ ने अपने पैरिश के कुछ प्रसिद्धतम सज्जनों और महिलाओं के नाम गिना दिए !

अच्छा और कुछ ? पादरी ने सर ऊपर उठाकर पूछा।

तोर्ड कुछ देर हिचकिचाने के बाद बोला - मैं चाहता हूँ यहीं गिरजे में लाकर उसका नाम रखने की रस्म अदा की जाए।

यानी इसी हफ्ते में किसी दिन ?

हाँ अगले शनीचर को बारह बजे दोपहर को।

ठीक। और कुछ ? पादरी ने पूछा

नहीं तो - कहकर थॉर ने अपनी टोपी उठा ली और उसे लपेट-सी देते हुए चलने का उपक्रम किया।

पादरी उठा - हाँ अभी एक बात बाकी है - और थोर्ड़ की तरफ बढ़ा और उसका हाथ पकड़कर और गंभीरतापूर्वक उसकी आँखों में अपनी दृष्टि गड़ाते हुए बोला - ईश्वर करे तुम्हारा बेटा तुम्हारे लिए वरदान सिद्ध हो !

सोलह वर्ष बाद !

आज थोर्ड़ फिर पादरी के पास आया था।

ओह, वाकई थोर्ड़ तुम अपनी जिंदगी बड़े मजे में बिताते हो, - पादरी ने कहा क्योंकि आज सोलह वर्ष बाद भी उसने थोर्ड़ में रत्ती भर भी कोई परिवर्तन नहीं पाया - क्योंकि मुझे कोई तकनीक नहीं है - थोर्ड़ के इस उत्तर में संतोष और प्रसन्नता की सुगंध थी।

पादरी चुप रहा, पर कुछ क्षणों बाद फिर पूछा - कहो आज क्या ख़ुशी की खबर है ?

कल मेरा बेटा नौकरी पर मुस्तकिल हो जाएगा।

बड़ा होनहार बेटा है।

और मैं पादरी को तब कोई दक्षिण नहीं देना चाहता, जब तक कि मुझे यह न मालूम हो जाए कि गिरजे में बेटे को कौन-सा स्थान मिलेगा।

उसे सबसे अगली जगह मिलेगी !

अच्छा तो फिर ठीक है। लीजिये यह दस डॉलर।

और कुछ मेरे योग्य सेवा ? पादरी ने डॉलर लेकर थोर्ड़ की तरफ टकटकी लगाकर पूछा। और तो कुछ नहीं ! सब कृपा है आपकी।

थोर्ड़ चला गया।

और भी आठ बरस निकल गए।

एक दिन पादरी साहब के कमरे के बाहर बड़ा शोर सुनाई पड़ता था, क्योंकि बहुत से लोग गिरजे में आ रहे थे।

उन सबके आगे-आगे थोर्ड़ था।

पादरी के कमरे में सबसे पहले थोर्ड़ घुसा।

पादरी ने नजर ऊपर उठाई और पहिचान लिया - आज तो तुम बड़े ठाठ के साथ आए हो थोर्ड़ ! कहो क्या मामला है ?

मैं इसलिए आया हूँ कि मेरे बेटे पर विवाह संबंधी नियम लागू कर दिए जाएं, क्योंकि गदमंद की लड़की कैरिन स्टोलिंदेन से उसकी शादी पक्की हो गई है।

गदमंद यह रहे - उसने अपने पास ही खड़े हुए एक सज्जन की ओर इशारा करके कहा।

ओह! तब तो वह इस पैरिश की सबसे धनी लड़की है।

सुनता तो हूँ - थोर्ड़ ने हाथ से सिर के बाल ऊपर करते हुए कहा।

कुछ देर तक पादरी चुप बैठा रहा, जैसे गहरे विचार में तल्लीन हो।

फिर अपने रजिस्टर में बिना कुछ बोले उन लोगों के नाम लिख लिए। और वहां पर गदमंद और थोर्ड़ ने तीन डालर मेज कर दिए।

दस्तखत करने के बाद थोर्ड़ ने तीन डालर मेज पर रख दिए।

मैं सिर्फ एक ही ले सकता हूँ - पादरी ने कहा।

सो तो ठीक है पर तो मेरा इकलौता बेटा है - बिलकुल इकलौता, इसलिए मैं उसकी शादी भी जरा शान के साथ करना चाहता हूँ। और तब पादरी ने वे तीनों डालर स्वीकार कर लिए। थोर्ड़ आज तुम तीसरी बार अपने बेटे की वजह से आए हो।

लेकिन अब तो मैं उससे निबट गया, थोर्ड़ ने कहा और अपनी पाकिट-बुक बंद करते हुए धन्यवाद देकर चला गया।

और उसके साथी भी पीछे-पीछे चले गए।

एक पखवारे के बाद -

दिन बहुत अच्छा लग रहा था।

नाव में बाप-बेटे झील पार कर रहे थे।

वे स्टोलिंदेन को ब्याहने जो जा रहे थे।

अरे! यह जगह तो खतरनाक है, फिन से अपनीसीट को सीधा करने के लिए उसपर से उठते हुए थोर्ड़ ने कहा।

जिस तख्ते पर फिन खड़ा हुआ था, वह उसी क्षण उसके पैरों तले से खिसक गया - उसने हाथ फेंके - चिल्लाया - और पानी में जा गिरा ! n

थोर्ड़ चीखा - ले यह पतवार पकड़ ले, और फ़ौरन खड़े होकर उसने पतवार फिन की तरफ फेंकी।

किन्तु फिन के हाथ में पतवार नहीं आई - उसने बहुतेरी कोशिश की और वह थककर अकड़ने भी लगा।

अच्छा जरा ठहरो - घबराओ नहीं - थोर्ड़ ने आश्वासन दिलाया और नाव को उसकी तरफ खेने लगा। तब तक बेटे ने पलटा खाया - एक आंसू भरी नजर से अपने बाप को देखा और गड़प हो गया !

थोर्ड़ को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। नाव को एक ही जगह रोके हुए वह जगह को एकटक देखता रहा - जहाँ अभी-अभी फिन डूबा था - जैसे उस जगह को एकटक देखता रहा - जहाँ अभी-अभी फिन डूबा था - जैसे वह इंतजार कर रहा था कि अभी हाल ही मेरा ऊपर निकल आएगा।

उसी जगह पर पानी में कुछ बुलबुले उठे, कुछ और उठे - और फिर एक बड़ा -सा बुलबुला उठा और फूटा गया !

झील की सतह फिर दर्पण की तरह स्वच्छ और निर्मल हो गई !

तीन दिन और तीन रात! न कुछ खाया, न जरा भी सोया। बराबर उसी जगह के चारों तरफ नाव में थोर्ड़ चक्क्र काटता रहा !

बेटे की लाश तो अभी तक नहीं मिली थी उसे।

तीसरी रात खत्म होते-होते लाश ऊपर उतरा आई।

उसे गोद में लेकर वह पहाड़ी की ऊपर अपने बाग़ की तरफ चला।

करीब-करीब एक साल बाद।

पतझड़ की वह शाम।

कमरे के बाहर दालान में कुछ आहट सुनाई पड़ी- जैसे दरवाजे की कुण्डी खटखटा सा रहा था।

पादरी ने जाकर दरवाजा खोल दिया।

कमर झुकी हुई - सफेद बाल- लंबा और दुबला - एक आदमी कमरे में आ घुसा।

पादरी उसे काफी देर तक गौर से देखता रहा - तब खिन जाकर उसे पहिचान पाया। वह थोर्ड़ ही था।

इतनी देर में घर से निकले हो ? पादरी ने पूछा और फिर मौन होकर निश्छल खड़ा रह गया।

हाँ, देर तो हो गई - कहकर थोर्ड़ कुर्सी पर बैठ गया।

पादरी भी बैठ गया और जैसे कुछ प्रतीक्षा करने लगा।

समय बीतता जा रहा था और बहुत सारा बीत गया - पर दोनों के दोनों चुप रहे।

आखिरकार थोर्ड़ ने चुप तोड़ी - मैं गरीबो को कुछ देना चाहता हूँ - जिससे की मेरे बेटे का नाम चलता रहे।

यह कहकर वह उठा, और कुछ डालर मेज पर रख दिए और फिर बैठ गया। पादरी ने डालर गिने।

यह तो बहुत अधिक धन है, पादरी बोला।

यह मेरे बाग़ की आधी कीमत है - आज ही मैंने बेंच कर चूका हूँ।

फिर बहुत देर तक मौन बैठे रहने के बाद पादरी ने बड़ी विनम्रतापूर्वक कहा - तो फिर अब क्या करने का इरादा है ?

कुछ भलाई का काम!

थोड़ी देर तक दोनों फिर चुप बैठे रहे। थोर्ड़ की आँखे जमीन की तरफ झुक हुई थी और पाडर की आँखे थोर्ड़ की आँखे की तरफ।

फिर शांत और धीमे स्वर में पादरी ने कहा - मैं सोचता हूँ की अब वास्तव में तुम्हारा बेटा तुम्हारे लिए वरदान बन गया।

हां! मैं भी यह सोचता हूँ !

थोर्ड़ ने झुकी पलकें उठाकर कहा - और दो बड़े-बड़े आंसू सूखे झुर्रियोंदार गालों पर बह चले।


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#22
क किसान ने अपने पड़ोसी की निंदा की ।

अपनी गलती का अहसास होने पर वह पादरी के पास क्षमा मांगने गया ।

पादरी ने उसको कहा कि वह पंखो से भरा एक थैला शहर के बीचोंबीच बिखेर दे ।

किसान ने वही किया, फिर पादरी ने कहा की जाओ और अब सभी पंख थैले में भर लाओ ।

किसान ने ऐसा करने की बहुत कोशिश की, मगर सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ गए थे ।

जब वह खाली थैला लेकर लौटा, तो पादरी ने कहा कि यही बात हमारे जीवन पर लागू होती है ।

तुमने बात तो आसानी से कह दी, लेकिन उसे वापस नहीं ले सकते, इसलिए शब्दों के चुनाव ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए ।


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#23
एक आदमी सड़क के किनारे समोसा बेचा करता था ।

अनपढ़ होने की वजह से वह अख़बार नहीं पढ़ता था ।

ऊँचा सुनने की वजह से रेडियो नहीं सुनता था और आँखे कमजोर होने की वजह से उसने कभी टेलीविजन भी नहीं देखा था ।

इसके बाबजूद वह काफी समोसे बेच लेता था । उसकी बिक्री और नफे में लगातार बढ़ोतरी होती गई ।

उसने और ज्यादा आलू खरीदना शुरू किया, साथ ही पहले वाले चूल्हे से बड़ा और बढ़िया चूल्हा खरीद कर ले आया ।

उसका व्यापार लगातार बढ़ रहा था, तभी हाल ही में कॉलेज से बी. ए. की डिग्री हासिल कर चुका उसका बेटा पिता का हाथ बँटाने के लिए चला आया ।

उसके बाद एक अजीबोगरीब घटना घटी ।

बेटे ने उस आदमी से पूछा, "पिताजी क्या आपको मालूम है कि हमलोग एक बड़ी मंदी का शिकार बनने वाले हैं ?" पिता ने जवाब दिया , "नहीं, लेकिन मुझे उसके बारे में बताओ ।"

बेटे ने कहा - " अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ बड़ी गंभीर हैं ।

घरेलू हालात तो और भी बुरे हैं । हमे आने वाले बुरे हालत का सामना करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए । "

उस आदमी ने सोचा कि बेटा कॉलेज जा चुका है, अखबार पढ़ता है, और रेडियो सुनता है, इसलिए उसकी राय को हल्के ढंग से नहीं लेना चाहिए ।

दूसरे दिन से उसने आलू की खरीद कम कर दी और अपना साइन बोर्ड नीचे उतार दिया ।

उसका जोश खत्म हो चुका था ।

जल्दी ही उसी दुकान पर आने वालों की तादाद घटने लगी और उसकी बिक्री तेजी से गिरने लगी ।

पिता ने बेटे से कहा , "तुम सही कह रहे थे ।

हमलोग मंदी के दौर से गुजर रहे हैं । मुझे ख़ुशी है कि तुमने वक्त से पहले ही सचेत कर दिया ।"


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#24
यह एक ऐसे बुद्धिमान वयक्ति की कहानी है जो अपने गाँव के बाहर बैठा हुआ था। एक यात्री उधर से गुजरा और उसने उस व्यक्ति से पूछा, इस गाँव में किस तरह के लोग रहते हैं क्योंकि मैं अपना गाँव छोड़ कर किसी और गाँव में बसने की सोच रहा हूँ।

तब उस बुद्धिमान व्यक्ति ने पूछा, तुम जिस गाँव को छोड़ना चाहते हो, उस गाँव में कैसे लोग रहते हैं ?

उस आदमी ने कहा, वे स्वार्थी, निर्दयी और रूखे हैं।

बुद्धिमान व्यक्ति ने जवाब दिया इस गाँव में भी ऐसे ही लोग रहते हैं।

कुछ समय बाद एक दूसरा यात्री वहाँ आया और उसने उस बुद्धिमान व्यक्ति से व्ही सवाल पूछा। बुद्धिमान व्यक्ति ने उससे भी पूछा, तुम जिस गाँव को छोड़ना चाहते हो, उस गाँव में कैसे लोग रहते हैं ?

उस यात्री ने जवाब दिया, वहाँ के लोग विनम्र, दयालु और एक-दूसरे की मदद करने वाले हैं। तब बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा, इस गाँव में भी तुम्हें ऐसे ही लोग मिलेंगे।

आम तौर पर हम दुनिया को उस तरह नहीं देखते जैसी वह है बल्कि जैसे हम खुद है वैसी देखते है।

इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि -

ज्यादातर मामलों में दूसरे लोगों का व्यवहार हमारे ही व्यवहार का आईना होता है।

अगर हमारी नीयत अच्छी होती है तो हम दूसरों की नीयत भी अच्छी मान लेते हैं। हमारा इरादा बुरा होता है तो हम दूसरों के इरादों को भी बुरा मान लेते हैं।


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#25
एक आदमी के मरने के बाद सेंट पीटर ने उससे पूछा कि तुम स्वर्ग में जाना चाहोगे या नर्क में। उस आदमी ने पूछा कि फैसला करने से पहले क्या मैं दोनों जगहें को देख सकता हूँ।

सेंट पीटर पहले उसे नर्क ले गए, वहाँ उसने एक बहुत बड़ा हॉल देखा जिसमें एक बड़ी मेज पर तरह-तरह की खाने की चीजें रखी थी।

उसने पीले और उदास चेहरे वाले लोगों की कतारें भी देखीं। वे बहुत भूखे जान पड़ रहे थे और वहां कोई हंसी-खुशी न थी।

उसने एक और बात पर गौर किया की उनके हाथों में चार फुट लंबे कांटे और छुरियाँ बँधी थी। जिनसे वे मेज के नीचे पर पड़े खाने को खाने की कोशिश कर रहे थे।

मगर वे खा नहीं पा रहे थे।

फिर वह आदमी स्वर्ग देखने गया। वहां भी एक बड़े हॉल में एक बड़ी मेज पर ढेर सारा खाना लगा था। उसने मेज के दोनों तरफ लोगों की लंबी कतारें देखी जिनके हाथों में चार फुट लंबी छुरी और काँटे बंधे हुए थे, ये लोग खाना लेकर मेज की दूसरे तरफ से एक-दूसरे को खिला रहे थे जिसका नतीजा था - खुशहाल, समृद्धि, आनंद और संतुष्टि।

वे लोग सिर्फ अपने बारे में ही नहीं सोच रहे थे बल्कि सबकी जीत के बारे में सोच रहे थे। यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है।


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#26
एक कहानी है कि प्राचीन भारत के किसी साधु महात्मा को राह चलते एक आदमी ने गालियाँ दी उस महात्मा ने बिना परेशान हुए उन बातों को तब तक सुना जब तक वह आदमी बोलते-बोलते थक न गया।

तब उन्होंने उस आदमी ने पूछा अगर किसी की दी हुई चीज़ न ली जाये तो वह चीज़ किसके पास रहेगी ?

आदमी ने जवाब दिया कि चीज देने वाले के पास ही रह जाएगी।

महात्मा ने कहा, मैं तुम्हारी इस दें को लेने से इंकार करता हूँ और वह उस आदमी को हक्का-बक्का और हैरान छोड़ कर चल दिए। उस महात्मा का खुद पर अंदरूदी कण्ट्रोल था।


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#27
क खरगोश अपना सामान उठाकर खुशी-खुशी जा रहा था उसे रास्ते में एक हिरन मिला । हिरन ने कहा - क्या बात है खरगोश मियाँ, बड़े खुश नजर आ रहे हो ।

मेरी शादी हो गई है । खरगोश बोला । बड़े भाग्यशाली हो भाई, हिरन ने कहा ।

शायद नहीं, क्योंकि मेरी शादी एक बहुत ही घमंडी खरगोशनी से कर दी गई है ।

उसने मुझसे बड़ा घर, ढेर सारे पैसे और कपड़े माँगे, जो मेरे पास नहीं थे । खरगोश ने उत्तर दिया ।

बड़े दुःख की बात है न , हिरन ने धीरे से कहा ।

शायद नहीं, क्योंकि मैं उसे बहुत चाहता हूँ । इसीलिए मैं खुश हूँ कि वह मेरे साथ तो है । खरगोश बोला ।

वाह, बड़े भाग्यशाली हो भाई, हिरन खुश होकर बोला ।

शायद नहीं भैया, क्योंकि शादी के अगले ही दिन मेरे घर में आग लग गई, खरगोश ने कहा ।

अरे रे। ......बड़े दुःख की बात है, हिरन बोला ।

शायद नहीं, क्योंकि मैं अपना सामान बाहर निकाल लाया और उसे जलने से बचा लिया, खरगोश बोला ।

अच्छा बड़े भाग्यशाली हो भाई, हिरन ने लंबी साँस छोड़ते हुए कहा।

नहीं भाई, शायद नहीं, क्योंकि जब आग लगी तो मेरी पत्नी अंदर सो रही थी ।

खरगोश ने उदास स्वर में कहा । ओहो, ये तो बड़े दुःख की बात है, हिरन बोला ।

नहीं, नहीं बिलकुल नहीं, क्योंकि मैं आग में कूद पड़ा और अपनी प्यारी पत्नी को सही-सलामत बाहर निकाल लाया ।

और जानते है सबसे अच्छी बात क्या हुई । इस घटना से उनसे सीख लिया है कि सबसे प्यारी चीज है जिंदगी ।

पैसा, घर और कपड़े हों या न हों लेकिन आपस का प्यार होना बहुत जरूरी है! खरगोश ने मुस्कुराते हुए कहा ।


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#28
एक लोमड़ी के पीछे शिकारी पड़े थे। लोमड़ी भागते-भागते एक लकड़हारे के पास पहुंची और उससे शरण माँगने लगी।

लकड़हारे ने अपनी झोपड़ी की ओर इशारा करते हुए लोमड़ी से उसमें छिप जाने को कह दिया। थोड़ी ही देर में शिकारी वहाँ आ पहुंचे। उन्होंने लकड़हारे से पूछा, “क्या तुम्हें कोई लोमड़ी दिखी यहाँ?”

लकड़हारे ने जवाब दिया, “नहीं,” लेकिन चुपचाप अपनी झोपड़ी की ओर इशारा कर दिया। शिकारी उसके इशारे को नहीं समझ पाए और वहाँ से चले गए।

लोमड़ी झोपड़ी से बाहर निकलकर आई और भागने लगी। लकड़हारे ने उसे आवाज लगाई और कहा,

“तुम कितनी कृतघन हो! अपनी जान बचाने के लिए तुमने मुझे धन्यवाद तक नहीं दिया!”

लोमड़ी रूखे स्वर में बोली, “अगर तुम्हारे बोल की तरह तुम्हारे इशारे भी भरोसे लायक होते तो मैं तुम्हें धन्यवाद जरूर देती।”

कई बार एक हल्का-सा इशारा, बोले गए शब्दों से ज्यादा बुरे होते हैं।

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#29
एक बार की बात है। एक भेड़िए ने एक भेड़ को मार डाला और वह उस मरी हुई भेड़ को अपनी माँद में लेकर जाने ही वाला था कि अचानक एक शेर आ गया।
वह शेर उस पर झपट पड़ा और भेड़ को छीनने का प्रयास करने लगा। भेड़िया शेर को देखकर चिल्लाया, “तुम्हें शर्म आनी चाहिए ।

तुम जंगल के राजा हो। तुम्हारे ऊपर सारे जानवर विश्वास करते हैं। तुम अब खुद ही मेरा शिकार छीन रहे हो? तुम तो इस जंगल के कलंक हो!”

शेर हँस पड़ा और बोला, “मुझे क्यों शर्म आए? मैं तुमसे शिकार छीनने में क्या बुराई है, जबकि तुम्हारा तो काम ही चोरी करके पेट भरना है।

मेरे ऊपर इस तरह का आरोप लगाने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, सड़ियल जानवर? शर्म तो तुम्हें आनी चाहिए क्योंकि तुमने चरवाहे की भेड़ चुराई है।” एक चोर दूसरे चोर से अच्छा नहीं हो सकता।

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#30
गर्मी का दिन था और एक शेर अपनी माँद में लेटा झपकी ले रहा था। अचानक एक चूहा अनजाने में उसके ऊपर कूद पड़ा।

शेर की नींद टूट गई। शेर ने चूहे को पंजे में दबोच लिया और उसे मसलने ही वाला था कि चूहा गिड़गिड़ाकर जान की भीख मांगने लगा।

शेर को उस पर दया आ गई और उसने चूहे को छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद, शेर जंगल में घूम रहा था। तभी अचानक वह शिकारियों के लगाए जाल में फँस गया।

जाल की रस्सियों में वह इतनी बुरी तरह से उलझ गया कि वह हिल तक नहीं पा रहा था। शेर जमीन पर पड़ा था और असहाय होकर चिल्ला रहा था।

उसके चीखने की आवाज जंगल में गूंजने लगी। चूहे ने भी वह आवाज सुनी। वह भी दौड़ा-दौड़ा पहुँचा। चूहे ने तुरंत जाल को अपने नुकीले दाँतों से काटना शुरू कर दिया।

कई बार छोटे और तुच्छ समझे जाने वाले लोग भी बड़े उपयोगी साबित होते हैं।

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#31
बहुत समय पहले की बात है। तेज गर्मी में एक दिन पक्षियों का राजा अपने साथी पक्षियों के साथ भोजन की तलाश में किसी नई जगह के लिए उड़ चला। उसने सारे पक्षियों से हर ओर भोजन की तलाश करने को कहा।

सारे पक्षी भोजन की तलाश में दूर-दूर फैल गए। एक पक्षी एक राजमार्ग पर पहुंचा। वहाँ उसने देखा कि बहुत सारी बैलगाड़ियों में अनाज के बोरे लदे हैं। उसने यह भी देखा कि जब गाड़ियाँ आगे बढ़ती हैं तो उनसे बहुत सारा अनाज नीचे गिर रहा है।

वह बहुत प्रसन्न हुआ और उसने जल्दी से राजा को इस स्थान के बारे में सबसे पहले बताने का निश्चय किया। वह उड़कर वापस आया और राजा से कहने लगा,

“महाराज, मैंने सड़क पर देखा है कि बहुत सारी बैलगाड़ियों पर अनाज के बोरे लदे जा रहे हैं, जिनसे अनाज गिर रहा है। हालाँकि, अगर आप सड़क पर नीचे दाने चुगेंगे, तो गाड़ियों से कुचले जा सकते हैं । वहाँ न जाने में ही भलाई है।”

पक्षियों के राजा को उसकी सलाह उचित लगी। उसने सभी पक्षियों को उस सड़क पर न जाने की चेतावनी दे दी।
नन्हाँ पक्षी हर दिन उस जगह जाता और अकेले ही अपना पेट भरकर आ जाता। एक दिन जब वह दाने चुग रहा था, तभी एक बैलगाड़ी निकली और वह लालची पक्षी कुचलकर मर गया।

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#32
शिकारियों के हमले से एक लोमड़ी की जान तो बच गई लेकिन उसकी पूँछ कट गई। उसे बहुत शर्म आ रही थी।

अपनी शर्म छिपाने के लिए उसने सारी लोमड़ियों की सभा बुलाई और बोली, “मेरे साथियो, मेरे ऊपर ईश्वर ने विशेष कृपा की है और मेरी पूँछ हटा दी है।

अब मैं सुखी और आरामदायक जीवन जी सकता हूँ। हमारी पूछें तो कुरूप और बोझ जैसी हैं। हैरानी की बात है कि हमने अब तक अपनी पूँछों को काटा क्यों नहीं! मेरी सलाह मानो और सब लोग अपनी-अपनी पूँछे काट डालो।’ “

एक चालाक लोमड़ी उठ खड़ी हुई और हँसते हुए बोली, “अगर मेरी पूँछ भी कट गई होती, तब तो मैं तुम्हारी बात का समर्थन कर देती।

लेकिन मेरी पूँछ तो सकुशल है तो मैं या बाकी लोमड़ियाँ अपनी-अपनी पूँछ क्यों काटें? तुम अपनी स्वार्थी सलाह अपने पास ही रखो।”

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