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एक डाकघर की कहानी: चिट्ठियों से लेकर ई-पोस्ट तक का सफर

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#1
तकनीक और आधुनिकता ने डाकघरों में भी समय-समय पर बदलाव किए। पुराने डाकघर ने बदलते समय में तकनीकियां अपनाईं और हाईटेक बन गए। इस विश्व डाक सप्ताह पर आइए जानते हैं कि आधुनिकता का डाकघरों पर क्या असर पड़ा।

डाक से भेजती थी भाई को राखी-
भले ही अब तकनीकी बढ़ गई है लेकिन पहले एक दूसरे से संपर्क करने का एक बहुत बड़ा सहारा डाक ही था। लखनऊ की रहने वाली प्रियंबदा सिंह (55 वर्ष) बताती हैं, “मुझे आज भी याद है मेरे भाई तब अहमदाबाद में नौकरी करते थे। मैं रक्षाबंधन में उन्हें डाक से राखी भेजती थी। वो आगे कहती हैं, “चिट्ठियों के दौर में अपनों से बहुत कम बात हुआ करती थी। आज की तरह नहीं कि फेसबुक या फोन पर घंटों बात हो लेकिन इसके रिश्तों में प्यार था।”

रिप्लाई पोस्टकार्ड हुआ करते थे
लखनऊ के चौक स्थित डाक घर में रिटायर्ड हो चुके पोस्टमास्टर आरे के मिश्रा बताते हैं, “पहले लोक पोस्टकार्ड पर संदेश लिखा करते थे और डाकिया उसी के पीछे एक प्लेन कार्ड लगाता था जिससे पढ़ने के बाद तुरंत लोग प्लेन कार्ड पर लोग रिप्लाई भेज दें क्योंकि गाँवों में पोस्टकार्ड आसानी से नहीं मिलता था। ”

पत्र पढ़ने के लिए होती थी छीना-झपटी
फोन या इंटरनेट व्यवस्था न होने के कारण पत्र ही एक जरिया था लोगों के बीच संवाद का। जिनके पति या बेटे बाहर काम करने चले जाते थे वहां से चिट्टी लिखते थे। डाकिए की साइकिल की घंटी सुनते ही लोग दौड़ पड़ते थे। कई बार तो सबसे पहले चिट्ठी पढ़ने के लिए छीना-झपटी भी हुआ करती थी। लोग चिट्ठी सुनने के लिए कतार में बैठते थे कि लिखने वाले ने उनका हाल चाल पूछा है कि नहीं। इसके साथ ही लोग लोग बाहर कमाने जाते थे वो पैसे भी डाक के द्वारा ही भेजते थे।

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डाकिया चिट्ठी पढ़कर भी सुनाता था
पहले लोगों में एक दूसरे के ऊपर भरोसा था यही कारण है कि गाँव में लोग पढ़ लिखे नहीं होते थे तो जब चिट्ठी आती थी तो डाकिया ही कई बार पढ़कर सुनाता था। कई बार लोग उससे पत्र का जवाब भी लिखवाते थे। ये डाकिए के साथ एक अलग रिश्ता दर्शाता था।

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500 साल पुरानी है, भारतीय डाक-व्यवस्था
अंग्रेजों ने सैन्य और खुफिया सेवाओं की मदद के लिए भारत में पहली बार वर्ष 1688 में मुंबई में पहला डाकघर खोला। फिर उन्होंने अपने सुविधा के लिए देश के अन्य इलाकों में डाक घरों की स्थापना करवाई। 1766 में लॉर्ड क्‍लाइव द्वारा डाक-व्‍यवस्‍था के विकास के लिए कई कदम उठाते हुए, भारत में एक आधुनिक डाक-व्यवस्था की नींव रखी गई। इस दिशा में आगे का काम वारेन हेस्‍टिंग्‍स द्वारा किया गया, उन्होंने 1774 में कलकत्ता में पहला जी.पी.ओ. की स्‍थापना किया। यह जीपीओ (जनरल पोस्‍ट ऑफिस ) एक पोस्‍टरमास्‍टर जनरल के अधीन कार्य करता था। फिर आगे 1786 में मद्रास और 1793 में बंबई प्रेसीडेंसी में जनरल पोस्‍ट ऑफिस की स्थापना की गई ।

विश्व की सबसे बड़ी डाक प्रणाली
आजादी के वक्‍त देश भर में 23,344 डाकघर थे। इनमें से 19,184 डाकघर ग्रामीण क्षेत्रों में और 4,160 शहरी क्षेत्रों में थे। आजादी के बाद डाक नेटवर्क का सात गुना से ज्यादा विस्तार हुआ है। आज एक लाख 55 हजार डाकघरों के साथ भारतीय डाक प्रणाली विश्व में पहले स्थान पर है। एक लाख 55 हज़ार से भी ज़्यादा डाकघरों वाला भारतीय डाक तंत्र विश्व की सबसे बड़ी डाक प्रणाली होने के साथ-साथ देश में सबसे बड़ा रिटेल नेटवर्क भी है। यह देश का पहला बचत बैंक भी था और आज इसके 16 करोड़ से भी ज़्यादा खातेदार हैं और डाकघरों के खाते में दो करोड़ 60 लाख से भी अधिक राशि जमा है। इस विभाग का सालाना राजस्व 1500 करोड़ से भी अधिक है।

ई-पोस्ट का युग आया
पिछले कई सालों में डाक वितरण के क्षेत्र में बहुत विकास हुआ है और यह डाकिए द्वारा चिट्ठी बांटने से स्पीड पोस्ट और स्पीड पोस्ट से ई-पोस्ट के युग में पहुंच गया है। पोस्ट कार्ड 1879 में चलाया गया जबकि 'वैल्यू पेएबल पार्सल' (वीपीपी), पार्सल और बीमा पार्सल 1977 में शुरू किए गए। भारतीय पोस्टल आर्डर 1930 में शुरू हुआ। तेज डाक वितरण के लिए पोस्टल इंडेक्स नंबर (पिनकोड) 1972 में शुरू हुआ। तेजी से बदलते परिदृश्य और हालात को मद्दे नजर रखते हुए 1985 में डाक और दूरसंचार विभाग को अलग-अलग कर दिया गया। समय की बदलती आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर 1986 में स्पीड पोस्ट शुरू हुई ओर 1994 में मेट्रो, राजधानी, व्यापार चैनल, ईपीएस और वीसैट के माध्यम से मनी ऑर्डर भेजा जाना शुरू किया गया।

और डाकघर भी हो गए हाईटेक
अब के डाकघर पहले से काफी हाईटेक हो चुके हैं। कई डाकघरों के बाहर एटीएम मशीनें लग गई हैं, जिसका बचत खाता डाकघर में है उसे एटीएम कार्ड मिलता है जो अब किसी बैंक के एटीएम कार्ड में भी स्वैप हो जाता है। स्पीड पोस्ट या पार्सल करने के बाद आप उसे ट्रैक कर सकते हैं कि वो कहां तक पहुंचा है। चौक डाकघर के पोस्ट मास्टर आरके गुप्ता बताते हैं, नई तकनीकियां आई हैं, मैं यहां कई सालों से हूं मेरे सामने ही बहुत कुछ बदला है। अब सारा काम कंम्प्यूटर पर होता है, डाकियों के पास स्मार्ट फोन है वो उसपर हस्ताक्षर करवाते हैं। चिट्ठियां भले ही बंद हो गई हों लेकिन पार्सल और सरकारी दस्तावेज आज भी डाक द्वारा ही जाते हैं। उदाहरण के लिए आधार कार्ड भी आपको डाक से मिलता है तो इसकी महत्ता कभी कम नहीं होगी। समय के साथ ये हाईटेक होती जो रही है।

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डाक अधीक्षक कार्यालय गोंडा में कार्यरत प्रकाशमान सिंह बताते हैं, “पोस्टऑफिसों को लगभग वर्ष 2004 से ही कंम्प्यूटर से जोड़ने की प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया था। अब तो अन्य तकनीकियां भी जुड़ रही हैं। सभी खातों को आॅनलाइन कर दिया गया है जिससे ग्राहक पूरे देश में किसी भी डाकघर में जमा निकासी कर सकते हैं।” वो आगे बताते हैं, “इसके साथ ही ग्रामीण डाकघरों में पोस्ट मास्टरों को हैंडहेल्ड डिवाइस भी दी गई है जिससे गांवों में स्थित डाकघरों के कार्यों को इंटरनेट के माध्यम से सेंट्रल सर्वर से जोड़ा गया हैे।

इंडियन पोस्टल पेमेंट बैंक भी खुलेगें
प्रकाश मान सिंह आगे बताते हैं कि भारतीय डाक को पेमेंट बैंक का लाइसेंस मिला है आने वाले समय में भारतीय डाक विभाग के अंतर्गत ही एक बैंक ब्रांच खुलेगी जिसे इंडियन पोस्टल पेमेंट बैंक कहा जाएगा तथा जिसके माध्यम से उपभोक्ताओं को बैंकिंग सुविधा दी जाएगी। ये पूरी तरह बैंक जैसे काम करेगी। इंडियन पोस्टल पेमेंट बैंक का कार्य प्रक्रिया में है।

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क्या आपकी भी कोई यादें डाकघर से जुड़ी हुई? कॉमेंट्स में बतायें ||
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3 ❤:
Rockstar,P_R_K,Jahan33,

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#2
Nice share
P_R_KUser is not available now
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#3
In childhood, sending greeting cards to families n friends on the occasion of New Year was a very memorable moment.
Jahan33User is not available now
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#4
Ye 1997 ki baat hai, jab mai 9th class padta tha tha class teacher jo bhi ladka absence hota tha toh unke ghar post card me parents ko unke bachchon ke baar me shikayat karte the.
Tab hum jo bhi ghar ko post aata tha usse lene dakiya paas khud chale jaate
Sirf kuch Post se dar lagta tha jo school se aate the....
Baaki bas ekdum zakas tha Indian post
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#5
maine bahut use kiya hai daak ghar apne papa ku letters bhejne ke liye Saudi Arabia aur bahut hi achi yaadien hai woh hamere letter ka intezar karte the aur hum unke kyun ke intezar ke baad kuch acha sunne ku milta hai toh uski kushi bahut hoti hai it was a very sweet memories i cant forget those days yet
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